झारखंड में इस साल के अंत तक विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। सियासी गलियारे में ये भी चर्चा है कि निर्वाचन आयोग समय से पहले ही चुनाव कराने के मूड में है। माना जा रहा है कि सितंबर में तारीखों की घोषणा हो सकती है और अक्टूबर में चुनाव हो। अगर इन अटकलों को सही माना जाए तो चुनाव से लगभग 3 महीने पहले हेमंत सोरेन जेल से बाहर आ गए हैं। जेल से रिहा होने के बाद हेमंत सोरेन ने कहा कि मुझे झूठे आरोपों में 5 महीने जेल के अंदर रखा गया। झारखंड के लोगों के लिए 5 महीने बहुत कठिन थे। सुनियोजित तरीके से लोगों की आवाज दबाई जा रही है। आज से जेल यात्रा यहीं खत्म हुई। पूर्व सीएम के इस बयान से साफ है कि वो रिहाई के बाद और आक्रामक मोड में हैं। और उनकी रिहाई झारखंड मुक्ति मोर्चा को नई ऊर्जा देगी। इंडी गठबंधन भी पहले से ज्यादा मजबूत नजर आएगा और गठबंधन के दलों के बीच चीजें और स्पष्ट रहेगी। इसके साथ ही बीजेपी भी अपनी रणनीति में बदलाव कर सकती है। प्रदेश की राजनीति में फेरबदल भी हो सकता है। ऐसी कई बातें हैं जो हेमंत की रिहाई के साथ ही चर्चा में है। पढ़िए हेमंत सोरेन की रिहाई के बाद झारखंड की राजनीति में क्या-क्या बदलाव हो सकते हैं…. पहले समझिए जेएमएम को कितना फायदा होगा पार्टी को नई ऊर्जा मिलेगीः लोकसभा चुनाव से पहले हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी से जेएमएम के चुनावी अभियान को निराशा हुई थी। अब विधानसभा चुनाव से पहले हेमंत की रिहाई, पार्टी के कार्यकर्ता और हर उस कैडर को नई ऊर्जा देगी, जो हेमंत को अपना नेता मानते हैं। हेमंत की वापसी से कार्यकर्ताओं में आत्मविश्वास बढ़ेगा। विधानसभा चुनाव में एक नया जोश दिखने को मिल सकता है। जेल जाने के मुद्दे को भुनाएगी पार्टीः जेएमएम हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी को लेकर बीजेपी को घेरने की कोशिश करेगी। अपने नेता के जेल से बाहर आने के बाद कार्यकर्ता एक संदेश देने का प्रयास करेंगे कि हेमंत सोरेन को गलत तरीके से फंसाया गया है। हेमंत सोरेन और पार्टी भी इस बात को हमेशा दोहराती रही है। केंद्र सरकार पर हमले तेज होंगे। लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव में भी प्रचार के दौरान केंद्र सरकार और बीजेपी पर ईडी का दुरुपयोग करने का आरोप पार्टी लगाएगी और इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाएगी। जेएमएम को मिल सकती है जनता की सहानुभूति चुनाव से पहले हेमंत को जमानत दिए जाने पर जनता के बीच एक संदेश जा सकता है कि पूर्व सीएम को फंसाया जा रहा। ऐसे में पार्टी को सहानुभूति वोट मिलने के आसार हैं, क्योंकि लोकसभा चुनाव में जेएमएम ने अपने प्रदर्शन में भी सुधार किया है। पार्टी ने तीन सीटें जीतीं। वहीं, इंडिया गठबंधन ने मिलकर पांच सीटें जीतीं। जबकि, 2019 में जेएमएम ने एक और कांग्रेस ने एक सीट जीती थी। पार्टी अभियान में आएगी तेजीः हेमंत की रिहाई के बाद जेएमएम का अभियान तेज होने की संभावना है। जेल में रहते हुए हेमंत कार्यकर्ता से सीधे बात कर पाते, लेकिन अब वो जमीनी स्तर पर कार्यकर्ता और जनता से रू-ब-रू हो पाएंगे। जिससे पार्टी में नई जान आएगी और विधानसभा चुनाव की तैयारियों में इसे मजबूती मिलेगी। गठबंधन को भी मजबूती मिलेगीः 2019 का चुनाव जेएमएम ने कांग्रेस और राजद के साथ मिलकर लड़ा था। इसमें जेएमएम बड़े भाई की भूमिका में थी और पार्टी ने राज्य की 81 में से 41 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 30 में जीत दर्ज कर प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। जेएमएम-कांग्रेस और राजद गठबंधन वाली सरकार हेमंत के नेतृत्व में बनी थी। अब पूर्व सीएम के बाहर आने के बाद गठबंधन में सीट शेयरिंग और दूसरे मसलों पर खुलकर बात हो पाएगी। हालांकि, हेमंत की रिहाई के बाद ही यह तय होगा कि झारखंड महागठबंधन किसके नेतृत्व में चुनाव लड़ेगा और सीएम पद का उम्मीदवार कौन होगा, लेकिन यह तय है कि सीट शेयरिंग को लेकर भी हेमंत सोरेन जेएमएम को मजबूती दे सकते हैं। एक्सपर्ट बोले- हेमंत की छवि और मजबूत हुई झारखंड की राजनीति के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ चौधरी का मानना है कि हेमंत सोरेन की रिहाई से ना सिर्फ जेएमएम बल्कि गठबंधन (कांग्रेस और राजद) के बीच नई ऊर्जा का संचार हुआ है। इसका फायदा विधानसभा चुनाव में होगा, एक मजबूत नेता के तौर पर उभरेंगे। वहीं, झारखंड की पॉलिटिक्ल एक्सपर्ट और वरिष्ठ पत्रकार नीरज सिन्हा का कहना है कि हेमंत सोरेन के जेल से बाहर आने के बाद राज्य की राजनीति भी करवट लेगी। लोकसभा चुनावों में वैसे भी बीजेपी को झारखंड में सेटबैक का सामना करना पड़ा है। आदिवासियों के लिए रिजर्व सभी पांच सीटों पर बीजेपी की हार हुई है। कल्पना के आने से और मजबूत हुई पार्टी हेमंत सोरेन के 5 महीने जेल में रहने के दौरान उनकी पत्नी कल्पना सोरेन की एक्टिव पॉलिटिक्स में एंट्री हुई। पार्टी को एकजुट रखने में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई। कल्पना सोरेन ने हेमंत के जेल में रहते जेएमएम कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाकर रखा। गांडेय उपचुनाव में जीत दर्ज की। कल्पना के राजनीति में आने से हेमंत सोरेन को ताकत मिली हैं। लोकसभा चुनाव का प्रचार हो या इंडिया गठबंधन की कोई बैठक, हेमंत की गैर मौजूदगी में कल्पना सोरेन ने पार्टी की कमान बखूबी संभाली। सरकार और पार्टी में क्या बदलाव हो सकते हैं हेमंत सोरेन के जेल से बाहर आने की खबर के बाद ये भी चर्चा है कि क्या वो फिर से सीएम की कुर्सी पर बैठेंगे। क्या चंपाई सोरेन इस्तीफा देंगे। या सरकार की बागडोर चंपाई के हाथ होगी और पार्टी की हेमंत के हाथ। एक्सपर्ट इसे लेकर दो संभावनाएं बताते हैं। पार्टी में फूट का डर 31 जनवरी को गिरफ्तारी से पहले हेमंत सोरेन ने चंपाई सोरेन के हाथों में झारखंड सरकार की कमान दी थी। अब उनकी रिहाई की खबर के साथ ही चर्चा है कि हेमंत फिर सीएम बनेंगे। सितंबर में विधानसभा चुनाव को लेकर आचार संहिता लग जाएगी। ऐसे में क्या हेमंत 3 महीने के लिए फिर सीएम बनेंगे। वहीं चंपाई सोरेन ने पार्टी के प्रति अपनी वफादारी साबित की है। सरकार का काम सही से चल रहा, किसी तरह का विवाद नहीं हुआ है। ऐसे में चंपाई को गद्दी से हटाने से पार्टी में फूट पड़ सकती है। इसका खामियाजा चुनाव में हो सकता है। झारखंड की राजनीति को जानने वाले सीनियर जर्नलिस्ट सुरेंद्र सोरेन का कहना है कि हेमंत को वापस सीएम बनाने को लेकर जेएमएम परिस्थितियों का आकलन करेगी और फिलहाल रिजर्व मोड में रहेगी। अगर किसी तरह से परिस्थितियां बदलती है या केस टर्न अप होता है तो ऐसे में चंपाई सोरेन को सीएम की कुर्सी से हटाने पर ना सिर्फ जनमानस बल्कि पार्टी में भी अलग संदेश जाएगा। संगठन को मजबूत करेंगे, अगले चुनाव में सीएम फेस होंगे? राजनीति गलियारे में चर्चा इस बात की भी है कि सब कुछ पहले जैसा चलेगा। यानी चंपाई सोरेन सीएम बने रहेंगे। उनके नेतृत्व में सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी। जबकि, हेमंत अपनी पत्नी कल्पना के साथ मिलकर पार्टी की मजबूती पर काम करेंगे। अगले चुनाव में वो सीएम फेस होंगे और जेएमएम को इसका फायदा होगा। वहीं, कल्पना सोरेन के सीएम बनने की अटकलों को वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र सोरेन सिरे से खारिज करते हैं। उनका कहना है कि कल्पना के सीएम बनने की फिलहाल कोई उम्मीद नहीं। अगर ऐसा होता तो गांडेय उपचुनाव जीतने के बाद ही हो जाता। हेमंत के जेल से बाहर आने पर मंत्री बनने की संभावना मानी जा सकती है। बीजेपी की बढ़ेगी टेंशन हेमंत की रिहाई की खबर बीजेपी की टेंशन बढ़ा सकती है। लोकसभा चुनाव में बीजेपी को पहले ही 3 सीटों का नुकसान हो चुका है। खासकर आदिवासी बहुल सीटें भाजपा गंवा चुकी है। 2019 के आम चुनाव में भाजपा को यहां 11 सीटें मिली थीं। जबकि, एनडीए को 12, लेकिन इस बार बीजेपी 8 सीटों पर सिमटी, जबकि आजसू गिरिडीह की सीट बचाने में कामयाब रही। एसटी के लिए आरक्षित सभी पांच सीटों सिंहभूम, खूंटी, लोहरदगा, राजमहल तथा दुमका पर भाजपा प्रत्याशियों की हार हुई है। इस आम चुनाव में अपनी परंपरागत सीटों खूंटी और लोहरदगा के साथ-साथ दुमका भी भाजपा के हाथ से निकल गई। केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा खूंटी से चुनाव हार गए। कांग्रेस के कालीचरण मुंडा ने उन्हें एक लाख से अधिक मतों से हराया। पार्टी की हार के पीछे संगठन के कमजोर होने के साथ-साथ हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी भी कारण रहा है। जिस तरह से हेमंत सोरेन को जेल में डाला गया उसे लेकर लोगों में खासकर आदिवासियों में सेंटीमेंटल इशू बन गया है। वहीं, सीनियर जर्नलिस्ट शंभूनाथ चौधरी का मानना है कि बीजेपी के सामने चुनौतियां बहुत है। फिलहाल बीजेपी सरकारी की नाकामी, भ्रष्टाचार, बांग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दे को लेकर जनता के बीच जा रही है। लेकिन, ये मुद्दे कितना असर छोड़ पाएंगी, कह पाना मुश्किल है। ये खबर भी पढ़िए… हेमंत सोरेन 5 महीने बाद जेल से बाहर आए:कहा- सुनियोजित तरीके से आवाज दबाई जा रही; हाईकोर्ट बोला- पूर्व सीएम के खिलाफ सबूत नहीं झारखंड के पूर्व CM हेमंत सोरेन शुक्रवार 28 जून को रांची की बिरसा मुंडा जेल से बाहर आ गए। जेल के बाहर समर्थकों ने उनका स्वागत किया। हेमंत की पत्नी कल्पना सोरेन भी उन्हें लेने के लिए जेल पहुंची थीं।जेल से निकलने के बाद हेमंत सोरेन ने कहा कि मुझे झूठे आरोपों में 5 महीने जेल के अंदर रखा गया। झारखंड के लोगों के लिए 5 महीने बहुत कठिन थे। सुनियोजित तरीके से लोगों की आवाज दबाई जा रही है। दिल्ली में मुख्यमंत्री जेल में बंद है। मंत्रियों को जेल में डाल दिया जा रहा है। न्याय की प्रक्रिया इतनी लंबी हो रही है कि न्याय मिलने में कई महीने लग रहे हैं। पूरी खबर पढ़िए